Wednesday, April 4, 2007

गानवी

उज्वल-उज्वल चिर पावन जल
उतरी लेकर निर्मल निर्झर!
बूँद-बूँद की श्वेत श्रृंखला
मिल जाती सतलज में आकर।

गगन तले दिख जाती सहसा
दूर कहीं से एक रेखा-सी।
झर-झर से झंकृत कर जाती
सात सुरों की सुर-कन्या-सी।

ना अथाह है, ना अपार है
ना यह यमुना, ना जाह्नवी।
प्रतिपल शीतल प्रतिपल चंचल
शक्तिदायिनी है यह गानवी।


(यह कविता मैंने गानवी जल विद्युत परियोजना, हिमाचल प्रदेश के भ्रमण के समय लिखी थी। गानवी एक सुंदर, छोटी-सी पहाड़ी नदी है जो किसी जलप्रपात की तरह सतलुज नदी में मिल जाती है। पहाड़ से कल-कल गिरती इस झरने की सुंदरता अद्वितीय है। विद्युत उत्पादन करने के कारण मैंने इसको शक्तिदायिनी कहा है।)

2 comments:

अभय तिवारी said...

बहुत सुन्दर कवि हृदय.. लिखते रहें..स्वागत है..

दिनेश पारते said...

धन्यवाद अभय जी,

आपकी बातों से मेरी लेखनी को बल मिलेगा !